नेपाल में हाल के वर्षों में राजशाही के समर्थन में जबरदस्त उछाल देखने को मिला है। जनता में बढ़ती असंतोष की भावना, राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट के बीच, पूर्व राजा ज्ञानेंद्र को लेकर फिर से चर्चाएँ तेज़ हो रही हैं। क्या नेपाल में एक बार फिर राजशाही की वापसी संभव है, या यह सिर्फ एक अस्थायी जनभावना है? इस ब्लॉग में हम नेपाल में राजशाही के बढ़ते समर्थन, इसके कारणों और संभावित राजनीतिक बदलावों पर चर्चा करेंगे।
नेपाल में राजशाही के समर्थन में बढ़ोतरी – कारण और प्रभाव
नेपाल 2008 में संवैधानिक राजशाही से एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य में परिवर्तित हुआ था। हालांकि, बीते कुछ वर्षों में जनता के बीच राजशाही के प्रति समर्थन फिर से उभरने लगा है।
1. वर्तमान सरकार के प्रति असंतोष
नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते लोग मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था से नाखुश हैं। बार-बार सरकार बदलने और कुशासन ने लोगों को पुराने राजशाही के दिनों की याद दिला दी है।
2. आर्थिक संकट और महंगाई
नेपाल को इस समय गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। बेरोजगारी, महंगाई और कमजोर आर्थिक विकास ने जनता को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या राजशाही के दौरान देश की आर्थिक स्थिति बेहतर थी।
3. भारत और चीन के साथ संबंध
नेपाल की विदेश नीति को लेकर भी असंतोष बढ़ा है। भारत और चीन के साथ संबंधों में उतार-चढ़ाव ने नेपाल के आम नागरिकों को यह सोचने पर मजबूर किया है कि राजशाही के समय अंतरराष्ट्रीय संबंध अधिक संतुलित थे।
4. राजा ज्ञानेंद्र की लोकप्रियता में इज़ाफा
पूर्व राजा ज्ञानेंद्र जनता के बीच फिर से सक्रिय हो गए हैं। हाल ही में उन्होंने कई सार्वजनिक समारोहों में भाग लिया, जहां भारी जनसमर्थन देखने को मिला। सोशल मीडिया पर भी उनके समर्थन में कई अभियान चलाए जा रहे हैं।
क्या नेपाल में फिर से राजशाही की वापसी संभव है?
नेपाल का संविधान राजशाही की वापसी की अनुमति नहीं देता, लेकिन जनता का बढ़ता समर्थन सरकार पर दबाव बना सकता है। यदि अगले कुछ वर्षों में जनता का असंतोष बढ़ता रहा, तो नेपाल में संवैधानिक राजशाही की बहस फिर से ज़ोर पकड़ सकती है।
हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या नेपाल के राजनीतिक दल और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस बदलाव को स्वीकार करेंगे या नहीं।
निष्कर्ष
नेपाल में बढ़ता राजशाही समर्थक आंदोलन दर्शाता है कि जनता मौजूदा व्यवस्था से खुश नहीं है। लेकिन क्या यह केवल अस्थायी असंतोष है, या फिर नेपाल एक बार फिर राजशाही की ओर बढ़ेगा? यह आने वाले वर्षों में नेपाल की राजनीति की दिशा पर निर्भर करेगा।
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