इतिहास से सीखें, सिर्फ इमारतें गिराने से कुछ नहीं बदलेगा!

हाल ही में औरंगज़ेब के मकबरे को लेकर बहस छिड़ी हुई है। कुछ लोग मानते हैं कि इसे गिराने से एक ऐतिहासिक अन्याय का बदला पूरा होगा। लेकिन क्या यह सच में हल है? क्या किसी इमारत को मिटा देने से इतिहास बदल सकता है? या हमें उन विचारों और मानसिकताओं को मिटाने की ज़रूरत है, जो आज भी समाज में भेदभाव और असहिष्णुता को बढ़ावा देते हैं?

इतिहास केवल पढ़ने और याद रखने के लिए नहीं, बल्कि सीखने और सुधारने के लिए होता है। लेकिन क्या हम वाकई इससे सही सीख ले रहे हैं?

क्या किसी मकबरे को गिराने से इतिहास बदल जाएगा? या असली बदलाव उन विचारों और मानसिकताओं को मिटाने से आएगा, जो समाज को पीछे धकेलती हैं? औरंगज़ेब का मकबरा उसकी विरासत का प्रतीक हो सकता है, लेकिन असली चुनौती उन विचारों का सामना करना है, जो नफरत और असहिष्णुता को बढ़ावा देते हैं। हमें इतिहास से सीखकर एक बेहतर भविष्य की दिशा में बढ़ना होगा, जहां धर्म, जाति और कट्टरता से ऊपर उठकर समाज के विकास पर ध्यान दिया जाए।

औरंगज़ेब का मकबरा उसकी विरासत का एक हिस्सा है, लेकिन असली समस्या वह सोच है जो नफरत और कट्टरता को बढ़ावा देती है। मकबरे को गिराने से कुछ भी हल नहीं होगा, बल्कि हमें यह देखना चाहिए कि आज की दुनिया में हम किन मूल्यों को बढ़ावा दे रहे हैं।

अगर हम वास्तव में बदलाव चाहते हैं, तो हमें अपने समाज में न्याय, समानता और आपसी सम्मान की भावना को बढ़ावा देना होगा। इतिहास को मिटाने के बजाय उससे सीखकर आगे बढ़ना ही सही तरीका है।

आपकी राय क्या है? क्या केवल मकबरे गिराने से मानसिकताएं बदल सकती हैं?

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