नाम बदलने की राजनीति पर घमासान, तुगलक लेन विवाद पर गरमाई राजनीति
दिल्ली का तुगलक लेन इन दिनों एक नए विवाद का केंद्र बन गया है। भाजपा के दो राज्यसभा सांसद डॉ. दिनेश शर्मा और कृष्णपाल गुर्जर ने अपने घर की नेमप्लेट पर तुगलक लेन की जगह “स्वामी विवेकानंद मार्ग” लिखवा दिया। इसके बाद इस मुद्दे पर राजनीतिक घमासान छिड़ गया है। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने इस कदम की आलोचना करते हुए बीजेपी को आड़े हाथों लिया।
संजय सिंह का बीजेपी पर हमला
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, संजय सिंह ने इस मुद्दे पर बीजेपी की नीयत पर सवाल उठाए और कहा कि “सिर्फ नाम बदलने से क्या होगा? अगर वाकई में ऐसा करना है तो ताजमहल को भी गिरा दिया जाए।”
उन्होंने आगे कहा:
> “प्रधानमंत्री मोदी जब अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा, डोनाल्ड ट्रंप और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे को ताजमहल दिखाने ले गए थे, तब मुगलों की याद नहीं आई? अगर नाम बदलना ही समाधान है तो क्या लाल किला भी तोड़ा जाएगा, जहां से हर साल 15 अगस्त को भाषण दिया जाता है?”
अंग्रेजों पर चुप क्यों है बीजेपी?
संजय सिंह ने यह भी सवाल उठाया कि बीजेपी सिर्फ मुगलों के नाम बदलने पर ध्यान क्यों देती है? उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने भी भारत पर राज किया, लेकिन बीजेपी उनके खिलाफ कुछ नहीं बोलती।
उन्होंने आरएसएस पर भी निशाना साधते हुए कहा:
> “बीजेपी को अगर नाम बदलने की इतनी ही चिंता है, तो वे अंग्रेजों की बनाई इमारतों और उनकी विरासतों पर क्यों नहीं बोलते? क्योंकि अगर वे ऐसा करेंगे तो आरएसएस का असली इतिहास भी सामने आ जाएगा।”
अबू आजमी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन
इस बीच, समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी के खिलाफ भी देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। कई जगहों पर बीजेपी कार्यकर्ताओं ने अबू आजमी की शव यात्रा भी निकाली है। हालांकि, इस पर अबू आजमी या समाजवादी पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
क्या नाम बदलने से इतिहास बदलेगा?
यह पहली बार नहीं है जब भारत में सड़कों, शहरों या ऐतिहासिक स्थलों के नाम बदलने को लेकर विवाद हुआ हो। इससे पहले इलाहाबाद का नाम प्रयागराज, फैजाबाद का नाम अयोध्या, और मुग़लसराय रेलवे स्टेशन का नाम दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन किया जा चुका है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या नाम बदलने से इतिहास बदल जाएगा? या यह सिर्फ राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश है?
निष्कर्ष
तुगलक लेन का नाम स्वामी विवेकानंद मार्ग लिखने पर उठे इस विवाद ने एक बार फिर राजनीतिक मतभेदों को उजागर कर दिया है। जहां बीजेपी इसे भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने का कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे राजनीति का हथकंडा मान रहा है। अब देखना होगा कि सरकार इस पर क्या फैसला लेती है और क्या नाम बदलने की यह राजनीति आगे भी जारी रहेगी या नहीं।
इस मुद्दे पर आपकी क्या राय है? कमेंट में हमें जरूर बताएं!
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