“इंडियाज़ गॉट लैटेंट”: घटिया चुटकुलों का मंच या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग?

घटिया कॉमेडी का बोलबाला?

“इंडियाज़ गॉट लैटेंट” का नवीनतम एपिसोड, जिसमें रणवीर अल्लाहबादिया शामिल थे, एक बार फिर साबित करता है कि ऑनलाइन कंटेंट के नाम पर कुछ भी परोसा जा सकता है, और उसे “कॉमेडी” का लबादा ओढ़ाया जा सकता है. इस शो में अल्लाहबादिया द्वारा किया गया एक आपत्तिजनक चुटकुला, जिसकी जितनी निंदा की जाए कम है, इस बात का प्रमाण है कि “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” की आड़ में कितनी गिरावट आ सकती है.

सुनील पाल का गुस्सा और जायज़ सवाल

सुनील पाल का गुस्सा जायज़ है, भले ही उनकी भाषा कुछ ज़्यादा ही कठोर हो. ऐसे “कॉमेडियन,” जो असल में समाज पर एक धब्बा हैं, अपनी ओछी और घटिया हरकतों से सिर्फ़ और सिर्फ़ गंदगी फैला रहे हैं. इनके पास न कोई “कंटेंट” है, न कोई क्रिएटिविटी. बस कुछ अपमानजनक और घृणित चुटकुलों के सहारे ये “वायरल” होना चाहते हैं.

सजा की मांग: क्या ये सही है?

दस साल की सजा की मांग शायद ज़्यादा हो, लेकिन इन “कंटेंट क्रिएटर्स” को ये समझना ज़रूरी है कि उनकी “कॉमेडी” की आड़ में किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अधिकार उन्हें नहीं है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब ये नहीं है कि आप किसी के साथ भी कुछ भी कह सकते हैं.

“कौन बनेगा करोड़पति” की ज़िम्मेदारी

और सिर्फ़ इन्हें ही क्यों दोष दिया जाए? “कौन बनेगा करोड़पति” जैसे शो भी इन “कलाकारों” को अपने मंच पर बुलाकर इनकी हरकतों को और बढ़ावा दे रहे हैं. क्या ये समाज को ये संदेश देना चाहते हैं कि ओछी बातें करके और गंदगी फैलाकर आप “सेलिब्रिटी” बन सकते हैं?

समाज का आईना या मूल्यों का पतन?

ये पूरा मामला एक गंभीर सवाल खड़ा करता है. क्या हम अपनी संस्कृति और अपनी values को इतना सस्ता समझने लगे हैं कि ऐसे लोगों को अपने समाज का “रोल मॉडल” मानने लगे हैं? ये सिर्फ़ एक चुटकुले की बात नहीं है, ये बात है हमारी सोच की, हमारी values की. और अगर हम अब भी नहीं समझे, तो आगे चलकर और भी ज़्यादा गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.

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