महिला डिप्टी जेलर की शिकायत के बाद: क्या ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ नीति पर उठ रहे हैं सवाल?

वाराणसी जिला जेल की महिला डिप्टी जेलर मीना कन्नौजिया ने जेल अधीक्षक उमेश सिंह पर उत्पीड़न और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं। इसके बाद, उनका तबादला नैनी जेल, प्रयागराज कर दिया गया है, जबकि अधीक्षक के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यह घटना ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ नीति की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े करती है।

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महिला डिप्टी जेलर की शिकायत के बाद: क्या ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ नीति पर उठ रहे हैं सवाल?

हाल ही में, वाराणसी जिला जेल की महिला डिप्टी जेलर मीना कन्नौजिया ने जेल अधीक्षक उमेश सिंह पर उत्पीड़न और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को संबोधित 17 सूत्रीय पत्र और एक वीडियो संदेश के माध्यम से अपनी व्यथा व्यक्त की, जिसमें उन्होंने बताया कि पिछले डेढ़ वर्षों से अधीक्षक उमेश सिंह उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहे हैं। उनके अनुसार, अधीक्षक ने उन्हें अपने घर बुलाने का प्रयास किया और इनकार करने पर सार्वजनिक रूप से अपमानित किया। मीना कन्नौजिया का कहना है कि अधीक्षक उनके पहनावे पर अभद्र टिप्पणी करते हैं और अमर्यादित भाषा का प्रयोग करते हैं। सबसे गंभीर आरोप यह है कि उन्होंने मीना और उनके परिवार को जान से मारने की धमकी दी है l

इन आरोपों के बाद, डिप्टी जेलर मीना कन्नौजिया का तबादला नैनी जेल, प्रयागराज कर दिया गया, जबकि अधीक्षक उमेश सिंह के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है。

यह घटनाक्रम ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ नीति की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े करता है। जब एक अधिकारी भ्रष्टाचार और उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाता है, तो क्या उसे न्याय मिलना चाहिए या उसे ही दंडित किया जाना चाहिए? यह मामला प्रशासनिक निष्पक्षता और न्याय की प्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।

आपकी राय में, क्या ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ नीति वास्तव में प्रभावी है, या यह सिर्फ एक नारा बनकर रह गई है? कमेंट में अपनी राय साझा करें!

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