वाह भाई वाह! यूपी वॉरियर्ज की फ़ील्डिंग देखकर लगता है जैसे क्रिकेट मैच नहीं, कोई “कॉमेडी सर्कस” चल रहा है। इतने कैच छूटे, इतने मिसफ़ील्ड हुए कि दर्शक भी अपना सिर पकड़कर बैठ गए। लगता है जैसे फ़ील्डिंग प्रैक्टिस की जगह इन्हें “मिस” करने की ट्रेनिंग दी जाती है।
दिल्ली कैपिटल्स जीत तो गई, लेकिन वो भी क्या “जान” पर खेलकर! लगता है जैसे मैच नहीं, कोई “रोमांचक थ्रिलर फ़िल्म” चल रही थी, जिसमें हीरो की सांसें अटकी हुई हैं। एक वक़्त तो लग रहा था जैसे दिल्ली कैपिटल्स आसानी से मैच जीत जाएगी, जब मेग लैनिंग अपनी पचास रन की पारी खेल रही थीं। लेकिन फिर क्या हुआ? जैसे ही लैनिंग आउट हुईं, मैच का रुख़ ही बदल गया। लगता है जैसे लैनिंग ही पूरी टीम की “बैटिंग की रीढ़” थीं, उनके जाते ही सब “बेसहारा” हो गए।
और फिर शुरू हुआ “मिसफ़ील्डिंग” का सिलसिला। यूपी वॉरियर्ज की फ़ील्डिंग देखकर लगता है जैसे इन्हें “कैच छोड़ो” का स्पेशल अवॉर्ड देना चाहिए। इतने मौके मिले, लेकिन सब हाथ से फिसल गए। अगर ये कैच पकड़े जाते तो शायद कहानी कुछ और ही होती। लेकिन क्या करें, “काश” और “अगर” क्रिकेट में नहीं चलता।
दिल्ली कैपिटल्स की जीत का सेहरा मरिजैन कप्प के सिर बंधा, जिन्होंने आख़िरी ओवरों में ताबड़तोड़ 29 रन बनाए। वरना शायद ये मैच भी हाथ से निकल जाता। लेकिन कप्प की इस पारी ने साबित कर दिया कि “अंत भला तो सब भला।” लेकिन फिर भी, दिल्ली कैपिटल्स को अपनी जीत पर ज़्यादा “खुश” होने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि अगर यूपी वॉरियर्ज की फ़ील्डिंग इतनी “खराब” नहीं होती, तो शायद नतीजा कुछ और ही होता।
कुल मिलाकर, ये मैच दिल्ली कैपिटल्स की जीत से ज़्यादा यूपी वॉरियर्ज की “कॉमेडी फ़ील्डिंग” के लिए याद रखा जाएगा। और दिल्ली कैपिटल्स को भी अपनी “सांसें” ज़रा संभालकर रखनी चाहिए, क्योंकि हर बार “कप्प” नहीं आते “मसीहा” बनकर।