मुगल बादशाह औरंगजेब एक बार फिर सुर्खियों में हैं। लेकिन इस बार मामला सिर्फ इतिहास से जुड़ा नहीं, बल्कि फिल्म, राजनीति और बयानबाजी से भी भड़क चुका है। हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘छावा’ ने इस बहस को हवा दी, जिसमें मराठा साम्राज्य के दूसरे शासक छत्रपति संभाजी महाराज की कहानी दिखाई गई है। इसके साथ ही, समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी के बयान ने इस विवाद को और भड़का दिया। महाराष्ट्र की राजनीति में भी यह मुद्दा चर्चा का केंद्र बन गया है।
आइए समझते हैं कि ‘छावा’ फिल्म, औरंगजेब पर अबू आजमी के बयान और महाराष्ट्र की सियासत ने कैसे इस पूरे विवाद को जन्म दिया।
‘छावा’ फिल्म से क्यों मचा बवाल?
विक्की कौशल स्टारर फिल्म ‘छावा’ मराठा योद्धा संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित है। फिल्म में अक्षय खन्ना ने औरंगजेब की भूमिका निभाई है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे औरंगजेब ने हिंदू धर्म बदलने के लिए संभाजी महाराज पर अत्याचार किए और अंततः उनकी क्रूर हत्या करवा दी।
फिल्म का अंतिम डायलॉग जिसने विवाद को जन्म दिया
फिल्म के आखिरी सीन में यह संवाद है:
> औरंगजेब: “हमसे हाथ मिला लो, मुगलों की तरफ आ जाओ। जिंदगी बदल जाएगी। बस तुम्हें अपना धर्म बदलना होगा।”
संभाजी: “हमसे हाथ मिला लो। मराठों की तरफ आ जाओ। जिंदगी बदल जाएगी और धर्म भी बदलना नहीं पड़ेगा।”
इस डायलॉग ने न केवल सिनेमा हॉल के अंदर, बल्कि बाहर भी सियासी और धार्मिक बहस को जन्म दे दिया।
अबू आजमी के बयान से बढ़ा विवाद
समाजवादी पार्टी के नेता और विधायक अबू आजमी ने औरंगजेब को क्रूर शासक मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा:
#WATCH | Mumbai | On his statement regarding Aurangzeb, Samajwadi Party leader and Maharashtra MLA Abu Azmi says, "The kings back then used to have struggle for power and property, but it was nothing religious. He (Aurangzeb) ruled for 52 years, and if he was really converting… pic.twitter.com/ZViKowZH2J
— ANI (@ANI) March 4, 2025
> “औरंगजेब क्रूर नहीं था, उसने कई मंदिर बनवाए और उसके शासन में भारत ‘सोने की चिड़िया’ था। इतिहास को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है।”
आजमी ने यह भी दावा किया कि संभाजी और औरंगजेब की लड़ाई धर्म पर नहीं, बल्कि सत्ता पर थी।
आजमी के बयान पर महाराष्ट्र में भूचाल
आजमी के इस बयान पर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने तीखा पलटवार किया। उन्होंने कहा:
> “औरंगजेब ने संभाजी महाराज को 40 दिनों तक यातनाएं दीं। उनकी आंखें निकाल दी गईं, जीभ काट दी गई, और फिर उनकी हत्या कर दी गई। ऐसे शासक को महान कहना मराठाओं का अपमान है। अबू आजमी के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज होना चाहिए।”
शिवसेना की नेता शाइना एनसी ने भी आजमी पर हमला बोलते हुए कहा:
> “औरंगजेब ने हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाई, मंदिरों को तोड़ा और आतंक फैलाया। आजमी को इतिहास पढ़ने की जरूरत है।”
बीजेपी नेता राम कदम ने भी बयान दिया:
> “मुगल आक्रांताओं की तारीफ करना सपा के डीएनए में है। आजमी को ‘छावा’ फिल्म देखनी चाहिए ताकि उन्हें सच पता चले।”
शिवाजी और औरंगजेब की ऐतिहासिक दुश्मनी
कैसे शुरू हुआ संघर्ष?
औरंगजेब (1658-1707) अपने धार्मिक कट्टरता और सख्त शरिया कानूनों के लिए जाना जाता था। दूसरी ओर, छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा स्वराज की स्थापना की और मुगलों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं।
1666: जब शिवाजी आगरा से भागे
1666 में औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को आगरा बुलाया और उन्हें कैद करने की कोशिश की। लेकिन शिवाजी मिठाई की टोकरियों में छिपकर भाग निकले। यह घटना औरंगजेब के लिए अपमानजनक थी और दोनों के बीच दुश्मनी और गहरी हो गई।
1689: संभाजी महाराज की क्रूर हत्या
शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद संभाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की बागडोर संभाली। लेकिन 1689 में औरंगजेब ने उन्हें पकड़ लिया और 40 दिनों तक अमानवीय यातनाएं दीं।
संभाजी महाराज के साथ हुए अत्याचार:
उनकी आंखें निकाल दी गईं
जीभ काट दी गई
पूरे शरीर को चीरकर टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया
संभाजी महाराज की मौत ने मराठा सेना में आक्रोश भर दिया और मराठाओं ने औरंगजेब की सेना के खिलाफ खुला विद्रोह कर दिया।
क्या औरंगजेब को धर्म से जोड़ना सही है?
महाराष्ट्र में इस मुद्दे पर अलग-अलग विचार सामने आ रहे हैं।
बीजेपी और शिवसेना (शिंदे गुट) औरंगजेब को हिंदू विरोधी शासक मानते हैं और उनकी तारीफ करने वालों पर सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
अबू आजमी और कुछ सेक्युलर नेता मानते हैं कि औरंगजेब को सिर्फ एक शासक के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि धार्मिक नजरिए से।
आदित्य ठाकरे ने कहा कि “बीजेपी और अबू आजमी दोनों ही इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं।”
प्रकाश आंबेडकर ने इसे बेकार की बहस बताते हुए कहा कि “हमें इतिहास से सबक लेना चाहिए, न कि उसे विवाद का कारण बनाना चाहिए।”
फिल्म ‘छावा’ के खिलाफ प्रदर्शन क्यों?
फरवरी 2025 में फिल्म रिलीज से पहले कुछ संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया। उनका कहना था कि:
1. फिल्म में इतिहास को तोड़-मरोड़कर दिखाया गया है।
2. यह औरंगजेब को एक क्रूर शासक के रूप में पेश करती है, जो सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ सकती है।
हालांकि, फिल्म के निर्देशक लक्ष्मण उतेकर ने सफाई दी कि “यह किसी समुदाय के खिलाफ नहीं, बल्कि सिर्फ संभाजी महाराज की कहानी है।”
निष्कर्ष: राजनीति, इतिहास और सिनेमा का संगम
फिल्म ‘छावा’ ने संभाजी महाराज और औरंगजेब की ऐतिहासिक दुश्मनी को दिखाकर विवाद को जन्म दिया।
अबू आजमी के बयान ने महाराष्ट्र की राजनीति को गरमा दिया।
बीजेपी और शिवसेना ने आजमी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की, जबकि विपक्ष ने इसे राजनीतिक एजेंडा बताया।
इतिहास को लेकर दो ध्रुवी विचारधाराएं सामने आईं –
1. कुछ लोग औरंगजेब को क्रूर शासक मानते हैं।
2. कुछ लोग उसे कुशल प्रशासक बताते हैं।
लेकिन असली सवाल यह है – क्या हमें इतिहास से सीख लेनी चाहिए या उसे बार-बार विवाद का मुद्दा बनाना चाहिए?
आपका इस विवाद पर क्या कहना है? क्या औरंगजेब को लेकर यह बहस जरूरी है या हमें आगे बढ़ना चाहिए? अपनी राय हमें कमेंट में बताएं!
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