लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी (BJP) द्वारा हाल ही में घोषित 70 जिला अध्यक्षों की सूची में गोरखपुर और काशी क्षेत्र में उच्च जातियों का सबसे अधिक प्रतिनिधित्व देखने को मिला है। ये दोनों क्षेत्र क्रमशः मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक गढ़ माने जाते हैं।
गोरखपुर क्षेत्र में घोषित 10 में से 8 (80%) जिला अध्यक्ष उच्च जाति से हैं। इनमें से 4 ब्राह्मण, 2 ठाकुर, 1 कायस्थ, और 1 भूमिहार समुदाय से आते हैं। मात्र 2 जिला अध्यक्ष OBC समुदाय से हैं, जबकि कोई भी दलित नेता इस सूची में जगह नहीं बना सका।
इसी तरह, काशी क्षेत्र, जिसमें मोदी की संसदीय सीट वाराणसी भी शामिल है, में 11 में से 7 (64%) जिला अध्यक्ष उच्च जातियों से हैं। इनमें 4 ब्राह्मण, 1 ठाकुर, 1 कायस्थ, और 1 भूमिहार समुदाय से आते हैं। OBC समुदाय से 5 जिला अध्यक्ष बनाए गए हैं, जिनमें 3 वैश्य, 1 भुजवा, और 1 तेली शामिल हैं। इस क्षेत्र में एकमात्र दलित प्रतिनिधि निर्मला पासवान (प्रयागराज-गंगापार) हैं।
BJP की रणनीति: जातीय समीकरण साधने की कोशिश?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, BJP की यह रणनीति पार्टी के परंपरागत प्रभावशाली और प्रमुख जातीय समूहों को मजबूत करने की कोशिश हो सकती है। काशी और गोरखपुर BJP के अभेद्य किले माने जाते हैं, और ऐसे में इन क्षेत्रों में ऊंची जातियों के नेताओं को प्रमुखता देना, पार्टी के मजबूत जातिगत समीकरण को दर्शाता है।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पार्टी संतुलन बनाने के लिए अगली सूची में OBC और दलित नेताओं को अधिक प्रतिनिधित्व दे सकती है।
अन्य क्षेत्रों में जातिगत समीकरण
- बृज और पश्चिमी उत्तर प्रदेश:
- 13 में से 7 (54%) जिला अध्यक्ष उच्च जाति से।
- पश्चिम UP में 6 OBC और बृज में 5 OBC जिला अध्यक्ष बने।
- दलित समुदाय का कोई प्रतिनिधित्व नहीं।
- अवध क्षेत्र (लखनऊ और अयोध्या सहित):
- 10 में से 6 जिला अध्यक्ष उच्च जाति से।
- 3 OBC और 1 दलित (पासवान) समुदाय से।
- अयोध्या के जिला अध्यक्ष का नाम अभी घोषित नहीं हुआ है।
- कानपुर-बुंदेलखंड:
- 13 में से 4 जिला अध्यक्ष उच्च जाति से (2 ब्राह्मण, 2 ठाकुर)।
- 6 OBC (3 कुर्मी, 1 कुशवाहा, 1 वैश्य, 1 लोध)।
- 3 दलित (कठेरिया, कोरी, पासी)।
क्या BJP अगली सूची में OBC और दलितों को देगी अधिक प्रतिनिधित्व?
पार्टी सूत्रों के अनुसार, अभी 28 जिलों के अध्यक्षों की घोषणा बाकी है, और इसमें OBC और दलित समुदाय से अधिक नेताओं को शामिल किया जा सकता है ताकि जातीय संतुलन बना रहे।
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